भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
तुम खेल सरल मन के सुख से, अब छोड़ मुझे यों दीन-हीन
मलयानिल-से जा रहे , निठुर! कालिका कलिका की सौरभ -राशि छीन!
पढ़ विजन-कुमारी के उर की गोपन भाषा सहृदय स्वर से
उड़ायाद्रि-क्षितिज पर ज्यों कोई तारिका विनत-मुख ठहरी-सी
करुणा, दुःखदुख, ईर्ष्या, रोष-विभा परिवर्तित जिसके क्षण-क्षण की
भावों के अभिनय में चित्रित नैराश्य-व्यथा-सी जीवन की
<poem>