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{{KKRachna
|रचनाकार=वत्सला पाण्डे
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>एक दिन तुम्हें
कह बैठी
सूरज
जल रही मैं
आज तक
बर्फीले लोग
सीली धरती
रह गए
तुम्हारे साथ
उन अंधेरों को भी
ले गया होगा
तुम्हारा ही साया
पर झुलसते गए
मन के कोने
इन्हीं को
अपना कहती रही
आज तक
कब तक
जलती रहूं
तुम्हारी आग में
होने लगी हूं बर्फ
क्या जानने को
तुम्हारे अर्थ
</poem>
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|रचनाकार=वत्सला पाण्डे
|संग्रह=
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कह बैठी
सूरज
जल रही मैं
आज तक
बर्फीले लोग
सीली धरती
रह गए
तुम्हारे साथ
उन अंधेरों को भी
ले गया होगा
तुम्हारा ही साया
पर झुलसते गए
मन के कोने
इन्हीं को
अपना कहती रही
आज तक
कब तक
जलती रहूं
तुम्हारी आग में
होने लगी हूं बर्फ
क्या जानने को
तुम्हारे अर्थ
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