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जो बन संवर के वो एक माहरू निकलता है / आदिल रशीद
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14:15, 1 अगस्त 2011
ज़मीन और मुक़द्दर की एक है फितरत
के जो भी बोया
वाही
वो ही
हुबहू निकलता है
ये चाँद रात ही दीदार का वसीला है
Aadil Rasheed
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