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|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
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सिकुड़ने मुख मंडलों पर शत्रुभय की
है असंगत घोषणा अपनी विजय की
कौन है इसके लिए दोषी बताओ
सृष्टि यदि गिनने लगी घड़ियाँ प्रलय की
सिकुड़ने मुखमंडलों..................</poem>