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सत्य अपना अपना / रमा द्विवेदी

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सत्य, सत्य है<br>
झूठ भी अपने आपमें<br>
सत्य है।<br>
सबको अपना सत्य<br>
स्वयं ही जीना पडता पड़ता है।<br>सत्य अच्छा याबुरा होता नहीं<br>उसे रूप देता हैइन्सान ।<br>आधुनिक जीवन कासत्य<br>टुकडों-टुकडोंमें बंट गया है।<br>
उपर से नीचे तक<br>
बडे बड़े से छोटे तक <br>
कौन हैं वे?
जिनका झूठ, उनकासत्य न हो।<br>सभी अपने सत्य कोजीने में उलझेहैंउलझेहैं<br>
मकडी के जाल जैसा<br>
नहीं निकल पाताकोई<br>
अपने सत्य से ।<br>
स्वयं ही तो रचाथा <br>सत्य काचक्रब्यूह<br>अब नही भेद पातेइसे<br>आना पडेगा पड़ेगा फ़िर<br>
किसी अर्जुन को ?<br>
सत्य काचक्र्ब्यूह भेदने केलिए<br>तब तक करोइन्त्जार इन्तज़ार <br>सहते रहो खुद का संताप<br>यह तुम्हाराअपना है<br>किसी ने दियानहीं ।<br>समेट लो टुकडे-टुकडे सत्य को<br>समाहित कर लोअपने अन्दर <br>विष -अमृत केघूंट<br>मंथन करो स्वयंही<br>सत्य के दर्शन पाजावोगे।<br>बिखर- बिखर करजीना छोडो<br>पूर्णता मेंजिवो<br>इसी में जीवन कीअमरता है<br>
और <br>
संसार का सुख भीभी।<br>
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