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Kavita Kosh से
''फ़स्ले बहार'' आने की सूरते हाल देता है
ज़मीं से जुड़ने का सबक़ सीखो दरख़्त से
रिश्तों को एक इक ''मक़ाम'' एक इक ''ज़लाल'' देता है
इंसान बस इतना करे तो है क़ाफ़ी
इक ''क़लम'' जमीं पे गर पाल देता है