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ग़ज़ल
उलझता जाए है दामन किसी का
ख़ुदारा देखिएगा फन किसी का

कहीं जुल्फें संवारी जा रही हैं
पुकारे है मुझे दरपन किसी का

किसी के घर पे खुशियों की फिजा है
सुलगता है कहीं गुलशन किसी का

मेरे सीने में तुम कहते हो दिल है
मुझे लगता है ये मदफन किसी का

हमारा घर, हमारा घर नहीं है
किसी की छत तो है आँगन किसी का

न हक छीनो किसी का ऐ लुटेरों
न लूटो इस तरह जीवन किसी का

लबों पे आह थी, आँखों में आँसूं
'मनु' गुज़रा है यूँ सावन किसी का
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