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|रचनाकार=जिगर मुरादाबादी
}}
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अब तो यह भी नहीं रहा अहसास
दर्द होता है या नहीं होता
इश्क़ जब तक न कर चुके रुस्वा<ref>बदनाम </ref>
आदमी काम का नहीं होता
हाय क्या हो गया तबीयत को
ग़म भी राहत-फ़ज़ा<ref>आनन्ददायक</ref>नहीं होता
वो हमारे क़रीब होते हैं
जब हमारा पता नहीं होता
दिल को क्या-क्या सुकून होता है
जब कोई आसरा नहीं होता
</poem>
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अब तो यह भी नहीं रहा अहसास
दर्द होता है या नहीं होता
इश्क़ जब तक न कर चुके रुस्वा<ref>बदनाम </ref>
आदमी काम का नहीं होता
हाय क्या हो गया तबीयत को
ग़म भी राहत-फ़ज़ा<ref>आनन्ददायक</ref>नहीं होता
वो हमारे क़रीब होते हैं
जब हमारा पता नहीं होता
दिल को क्या-क्या सुकून होता है
जब कोई आसरा नहीं होता
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