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{{KKRachna
|रचनाकार=जिगर मुरादाबादी
}} काम आखि़र जज्बा-ए-बेइख्तियार आ ही गया<br>{{KKCatGhazal}}दिल कुछ इस सूरत से तड़पा उनको प्यार आ ही गया<br><brpoem>
हाय, काफ़िर दिल की ये काफ़िर जुनूँ अंगेज़ियाँ<br>हुस्न-ए-तस्व्वुर का फ़रेब-ए-रंग-ओ-बूतुमको प्यार आए न आए, मुझको प्यार मैंने समझा जैसे वो जाने बहार आ ही गया<br><br>
हाँ, सज़ा दे ऎ खु़दा-ए-इश्क़ ऎ तौफ़ीक़-ए-ग़मफिर ज़ुबान-ए-बेअदब पर ज़िक्र-ए-यार आ ही गया इस तरहा हूँ किसी के वादा-ए-फ़रदा<ref>आने वाले कल के वादे पर</ref> पे मैंदर हक़ीक़त जैसे मुझको ऐतबार आ ही गया हाय, काफ़िर दिल की ये काफ़िर जुनूँ अंगेज़ियाँ<ref>उन्माद पूर्ण हरकतें</ref>तुमको प्यार आए न आए, मुझको प्यार आ ही गया जान ही दे दी ` जिगर ' ने आज पा-ए-यार पर<brref>प्रेयसी के क़दमों </ref> परउम्र भर की बेक़रारी को क़रार आ ही गया<br><br/poem>{{KKMeaning}}