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तेरे हाथों से छूटी जो, मिट्टी से हम वार सी हमवार हुई हंसती-खिलती सी गुड़िया, इक धक्के से लम्हे में बेकार हुई
ज़ख्मों पर मरहम देने को, उसने हाथ बढाया था
जाने कब से खामोश थे लब, और सन्नाटा था ज़हनों में
इन दोनों की कैसी तन्हाई भीथी जो, महसूस मुझे इस बार हुई
जिसके कारण महका-महका मेरे खिलना सीखा जीवन का के हर लम्हालम्हे ने शुकराना है उसका जिससे " 'श्रद्धा " ' महकी गुलज़ार हुई
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