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कविता में छकड़ा / मदन गोपाल लढ़ा
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08:18, 24 मार्च 2012
जो कार को केवल
सड़क पर देखते भर हैं
जिनके ख्वाबों तलक में भी
बसा है छकड़ा।
वस्तुत:
कविता में छकड़े का होना
नवाचार नहीं
लोकाचार है
रस-छंद-अलंकार सरीखा।
</Poem>
आशिष पुरोहित
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