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नाक / वीरेन डंगवाल

2 bytes removed, 11:45, 11 अप्रैल 2012
|संग्रह=दुष्चक्र में सृष्टा / वीरेन डंगवाल
}}
    <poem>हस्ती की इस पिपहरी को<br>यों ही बजाते रहियो मौला!<br>आवाज़<br>
बनी रहे आख़िर तक साफ-सुथरी-निष्कंप
</poem>
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