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|रचनाकार=मुकेश मानस
|संग्रह=पतंग और चरखड़ी / मुकेश मानस
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<poem>
मेरी गली की औरतें दुखियारी
विधवा हैं सारी
सब जी रही हैं ऐसे
मजबूरी में कोई रस्म निभाए जैसे मेरे जहन में कभी नहीं सोती है सारी गली रोती है '''रचनाकाल : 2001'''
</poem>
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मेरी गली की औरतें दुखियारी
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सब जी रही हैं ऐसे
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