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{{KKRachna
|रचनाकार=अज्ञेय
|संग्रह=सुनहरे शैवाल / अज्ञेय; इत्यलम् / अज्ञेय
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निरुद्वेग, मीठे विषाद में चुप ही रह जा
इस रहस्य अपरिम के आगे आदर से नतमस्तक, रे कवि !
'''डलहौजी, 3 जून, 1934'''
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