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{{KKRachna
|रचनाकार=अज्ञेय
|संग्रह=इन्द्र-धनु रौंदे हुए थे / अज्ञेय
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भले ही फिर व्यथा के तम में
बरस पर बरस बीतें
एक मुक्तारूप को पकते! '''दिल्ली, 17 मई, 1956'''
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