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{{KKRachna
|रचनाकार = सरदार अंजुम
|संग्रह=
}}
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<poem>
1).
अपाहिज बनके जीने की अदा अच्छी नहीं लगती
जो सूली तक न ले जाए सजा अच्छी नहीं लगती
2).
ये धमाके आम हों तो क्या करें
मौत का पैगाम हों तो क्या करें
मिल गयी थी जब हमें इनकी खबर,
कोशिशें नाकाम हों तो क्या करें
हादसे जिनमे छिपी हो दुश्मनी,
दोस्ती के नाम हों तो क्या करें
फरवरी 2013 में हैदराबाद धमाकों पर
</poem>
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|रचनाकार = सरदार अंजुम
|संग्रह=
}}
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1).
अपाहिज बनके जीने की अदा अच्छी नहीं लगती
जो सूली तक न ले जाए सजा अच्छी नहीं लगती
2).
ये धमाके आम हों तो क्या करें
मौत का पैगाम हों तो क्या करें
मिल गयी थी जब हमें इनकी खबर,
कोशिशें नाकाम हों तो क्या करें
हादसे जिनमे छिपी हो दुश्मनी,
दोस्ती के नाम हों तो क्या करें
फरवरी 2013 में हैदराबाद धमाकों पर
</poem>