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11:40, 28 जून 2013
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सूत (मनोहर श्याम जोशी के धागे सेसुरक्षा की सीमा-रेखा बनाईबस्ती केअशंक, विश्वासी लोगों नेलिए)
वर्षों तकदेह के रोमछिद्रों से भी अधिक द्वार हैंकिसी ने आँख नहीं उठाई उधरसूत ही मजबूत फाटक बना रहा,जीवन के
जब तक शील अभी-अभीकिसने यह कही बहुत पुरानी सीहमजादों की लड़ाई मेंकोई एक जीतता हैजरूर हम कभीअपने हमजाद के दोस्त नहीं होतेअपनी युवा इंद्रियों के साथखड़ा हूँजीवन के दरवाजों पर कोईमेरी सहजताओं का पर्दादुश्मन हैखींच लेता है मुझेइसकी देहरियों के भीतर से बाहर हजारवीं बार... लाखवीं बार...देह के रोमछिद्रों से भी अधिक द्वार हैंजीवन के, परअभी-अभी किसी ने बताया है -हमजादों की लड़ाई में कोई एक जीतता हैजरूर हम कभी अपने हमजाद के दोस्त नहीं होते ('हमजाद ' मनोहर श्याम जोशी जी का उपन्यास भी है जिसमें व्यक्ति के साथ ही उसके भीतर उत्पन्न होने वाले एक प्रतिगामी व्यक्ति को 'हमारीहमजाद ' आँखों कहा गया है उपन्यास में चमकता रहाइसे जिन दो अलग - अलग चरित्रों के माध्यम से दिखाया गया है वे दोनों ही प्रतिगामी हैं और एक - दूसरे के पूरक हैं)