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| रचनाकार= इरशाद खान सिकंदर
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मसायल हल न होंगे ख़ुदकुशी से
उलझना ही पड़ेगा ज़िंदगी से

मुझे उसकी गली पहुंचायेगी क्या
कोई पूछे मिरी आवारगी से

अगर तुम सामने आओ अचानक
तो हम पागल न हो जाएँ खुशी से

उसे पहचानना बेहद है मुश्किल
वो सबसे मिल रहा है सादगी से

तिरे रस्ते में सहरा ने बताया
बुझाओ प्यास अपनी तश्नगी से

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