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खेचळ / सुनील गज्जाणी

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}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}{{KKCatKavita‎}}<poemPoem>लुगाई, सूखै कूंवै मांय बार-बार
बाल्टी घाल‘र पाणी काढण रौ खेचळ करती ही।
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