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<poem>हरित नव पल्लव द्रुम डोलत है बार-बार,
विविध बयार खूब फूल की बहार है।
बने हैं कियारी फुलवारी बहुभाँतिन के,
बहुते गुलाबी आबो फूले सब डार हैं।
बोलत सुक सारिका वो कोकिल कल गान करे,
मालिन को प्रेम प्यारे अगम अपार हैं।
द्विज महेन्द्र रामचन्द्र चलो जी हमारे संग,
जनक जी के बाग में बसंत की बहार है।
</poem>
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