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{{KKRachna
|रचनाकार=परमानंददास
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
आज दधि मीठो मदन गोपाल ।
भावे मोही तुम्हारो झूठो, सुन्दर नयन विशाल ॥
बहुत दिवस हम रहे कुमुदवन, कृष्ण तिहारे साथ ।
एसो स्वाद हम कबहू न देख्यो सुन गोकुल के नाथ ॥
आन पत्र लगाए दोना, दीये सबहिन बाँट ।
जिन नही पायो सुन रे भैया, मेरी हथेली चाट ॥
आपुन हँसत हँसावत औरन, मानो लीला रूप ।
परमानंद प्रभु इन जानत हों, तुम त्रिभुवन के भूप॥
</poem>
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आज दधि मीठो मदन गोपाल ।
भावे मोही तुम्हारो झूठो, सुन्दर नयन विशाल ॥
बहुत दिवस हम रहे कुमुदवन, कृष्ण तिहारे साथ ।
एसो स्वाद हम कबहू न देख्यो सुन गोकुल के नाथ ॥
आन पत्र लगाए दोना, दीये सबहिन बाँट ।
जिन नही पायो सुन रे भैया, मेरी हथेली चाट ॥
आपुन हँसत हँसावत औरन, मानो लीला रूप ।
परमानंद प्रभु इन जानत हों, तुम त्रिभुवन के भूप॥
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