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{{KKRachna
|रचनाकार=राजेन्द्र जोशी
|संग्रह=मौन से बतकही / राजेन्द्र जोशी
}}
{{KKCatKavita‎}}<poem>मेरे दिखाये रास्ते पर नहीं
तू खुद चल
राह अपनी
दशकों बाद
सच है यह कि
चल सकती है तू
अपने पांवों को तूने
देखा ही नहीं
देख एक बार
खुद चलकर
चाहता हूँ अब
मैं भी यही
चाहे दशकों बाद ही सही
</poem>
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