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{{KKRachna
|रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार
|अनुवादक=
|संग्रह=पद-रत्नाकर / भाग- 4 / हनुमानप्रसाद पोद्दार
}}
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<poem>
बरसगाँठि बृषभानु-कुँवारि की कीरति गीत गवाए जू।
चंदन-अगर लिपाइ अरगजा, मोतिन चौक पुराए जू॥
नंदीसुर ते नंद जसोदा सहसुत न्यौति बुलाए जू।
गोपी-गोप, गाय-गोसुत लै चलि बरसाने आए जू॥
तब वृषभान बड़े आदर सौं निज मंदिर पधराए जू।
भीतर भवन जसोदा-कीरति मिलत परम सुख पाए जू॥
जसुमति-कनिया तैं लालन लै कीरति गोद खिलाए जू।
ब्रजरानी लइ कुँवारि गोद ब्रजनारिन मंगल गाए जू॥
</poem>
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बरसगाँठि बृषभानु-कुँवारि की कीरति गीत गवाए जू।
चंदन-अगर लिपाइ अरगजा, मोतिन चौक पुराए जू॥
नंदीसुर ते नंद जसोदा सहसुत न्यौति बुलाए जू।
गोपी-गोप, गाय-गोसुत लै चलि बरसाने आए जू॥
तब वृषभान बड़े आदर सौं निज मंदिर पधराए जू।
भीतर भवन जसोदा-कीरति मिलत परम सुख पाए जू॥
जसुमति-कनिया तैं लालन लै कीरति गोद खिलाए जू।
ब्रजरानी लइ कुँवारि गोद ब्रजनारिन मंगल गाए जू॥
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