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भूला मैं, पहचान न पाया मृत्यु-वेशमें तुमको, नाथ!
तुहीं तुम्हीं रूप धर घोर मृत्युका, आये करने मुझे सनाथ॥
लीलामय-लीला विचित्र अति, को‌ई भी न पा सका पार।
तुहीं तुम्हीं पिलाते स्वयं कृपा कर रूप-सुधा निज मधुर अपार॥कर आवरण-भन्ग भंग तुमने ही मायाका कर पर्दा छिन्न।देकर मुझे गाढ़ आलिन्गनआलिंगन, किया सदाके लिये अभिन्न॥
</poem>
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