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|रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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<poem>अब दिन शाला चलने के...

बीते दिन लड़ने-भिड़ने के,
अब आए दिन पढ़ने के।

छोड़ो अब तो गुड्डा-गुड़िया,
अब दिन कलम पकड़ने के।

घर में रहकर रोने-धोने,
अब दिन गए मचलने के।

कलम-किताबें बस्ता लेकर,
अब दिन शाला चलने के।</poem>
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