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|रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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<poem>
रोज रोज हो जाता है दिन,
रोज रोज हो जाती रात|
बोलो बापू क्या है कारण,
बोलो बापू क्या है बात|

बापू बोले बात जरासी,
बात ठीक से सोचा कर|
धरती माता रोज लगाती,
सूरज बाबा के चक्कर|
पेट सामने जब धरती का,
सूरज बाबा के होता|
उसी समय धरती के ऊपर,
सोनॆ जैसा दिन होता|
धरती को सूरज की होती,
कितनी अदभुत यह सौगात|

जहां पीठ धरती की होती,
वहां अंधेरा हो जाता|
धरती के पिछले हिस्से से,
सूरज जरा न दिख पाता|
थके थकाये दिन के प्राणी,
नींद ओढ़कर सो जाते,
जंगल नदियां पर्वत सागर,
अंधियारे में खो जाते|
बेटे इसी समय को हम सब,
दुनियां वाले कहते रात|

बापू बोले इसी तरह से,
होते रहते हैं दिन रात|
</poem>
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