Changes

<poem>
क्यों जुबां पर मेरी आ गयी हैं प्रिये
थीं छुपानी जो बातें , कही हैं प्रिये
तेरी आमद से गुलशन महकने लगा
दास्तानें कई अनकही हैं प्रिये
प्यार दौरे माज़ी के सब तू की बातें भुला दे 'रक़ीब'आज तक अब तलक दिल में जितनी रही बची हैं प्रिये
</poem>
490
edits