भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीलोत्पल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=नीलोत्पल
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
पृथ्वी मेरी कविता का पाठ करती है
जड़ें सुनती हैं दरारों से तुम्हें
शीशों पर जमी परछाईयां हिलती हैं अकेले में
कुर्सियां पेड़ की ख़ामोश मुद्रा में
भरती हैं हुंकार
लैम्प-पोस्ट की सफेद रोशनी में नाचते हैं कीड़े
संगीत, मृत्यु की खामोश विदाई तलक बजता है
नन्हें फूल उतारते हैं पोशाकें
आहिस्ता से भीतर हो रही बारिश
दे देता हूं नन्हें हाथ फैलाए
उस शरमाई बच्ची को
वह अरुणाभ जानती है
संगीत हाथों में नहीं बहा दिए जाने में है
वह रुककर रंग उडेंलती है
खाली केनवास पर
मधुमक्खियां रखती है अपने अंडे
विद्युत की रोशनियों से छिपाकर
सूखे कंड़ों में
वहां कोई स्पर्श नहीं
तुम छूती हो एक अनछुआपन
ओ नन्हीं फरिश्ता बच्ची
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=नीलोत्पल
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
पृथ्वी मेरी कविता का पाठ करती है
जड़ें सुनती हैं दरारों से तुम्हें
शीशों पर जमी परछाईयां हिलती हैं अकेले में
कुर्सियां पेड़ की ख़ामोश मुद्रा में
भरती हैं हुंकार
लैम्प-पोस्ट की सफेद रोशनी में नाचते हैं कीड़े
संगीत, मृत्यु की खामोश विदाई तलक बजता है
नन्हें फूल उतारते हैं पोशाकें
आहिस्ता से भीतर हो रही बारिश
दे देता हूं नन्हें हाथ फैलाए
उस शरमाई बच्ची को
वह अरुणाभ जानती है
संगीत हाथों में नहीं बहा दिए जाने में है
वह रुककर रंग उडेंलती है
खाली केनवास पर
मधुमक्खियां रखती है अपने अंडे
विद्युत की रोशनियों से छिपाकर
सूखे कंड़ों में
वहां कोई स्पर्श नहीं
तुम छूती हो एक अनछुआपन
ओ नन्हीं फरिश्ता बच्ची
</poem>