भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब' | संग्रह = }} {{KKCatGha...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
| रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
| संग्रह =
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
पहले तो बिगड़े समाँ पर बोलना है
फिर ज़मीनो आसमाँ पर बोलना है

बोल भी सकता नहीं है ठीक से जो
उसके अंदाज़े-बयाँ पर बोलना है

बेबसी है, बाग़ में यह, बाग़बाँ की
मौसमे गुल में ख़ज़ाँ पर बोलना है

माजरा क्या है भला, क्यों ग़मज़दा हो
क्या तुम्हें आहो-फुगां पर बोलना है

ज़ख्म दिल के, खोलकर हमने रखे हैं
जब कहा, दर्दे-निहाँ पर बोलना है

थे बहत्तर, अह्ले-बेयत, जिस में शामिल
उस मुक़द्दस कारवाँ पर बोलना है

ख़ामुशी ही से 'रक़ीब' इस बज़्म में अब
ज़िंदगी की दास्तां पर बोलना है
</poem>
384
edits