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|संग्रह=आँख ये धन्य है / नरेन्द्र मोदी
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<poem>प्रयत्न {{KKCatKavita}}
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सर झुकाने की बारी आये
ऐसा मैं कभी नहीं करूँगा
पर्वत की तरह अचल रहूँ
व नदी के बहाव सा निर्मल
........
शृंगारित शब्द नहीं मेरे
नाभि से प्रकटी वाणी हूँ
...............
मेरे एक एक कर्म के पीछे
ईश्वर का हो आशीर्वाद
............
 
</poem>
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