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|रचनाकार=राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
|अनुवादक=
|संग्रह=म्हारै पांती रा सुपना मुट्ठी भर उजियाळौ / राजू सारसर ‘राज’संजय आचार्य वरुण
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<poem>
बीतै दिन अर बीतै रात्यां
कुण पुछै मनड़ै री बात्यां।
 
मन फंय जावै मकड़ जाळ में
खूब करै तड़फातोड़ी
पल पल छिण छिण घटै जिन्दगी
सांस घटै थोड़ी थोड़ी
 
डरूँ फरूँ सा दिन हुय जावै
हांफीज्योड़ी सूवै रात्यां।
 
ओजीसाळौ अबखायां रौ
उम्मीदां जद ठोकर खावै
पळक्यां जिण री करै बगावत
उण आंख्यां ने नींद न आवै
 
काळंूठौ सो दिन लागै अर
धौळी धौळी लागै रात्यां।
 
बैरी बणै बदन रौ कपड़ौ
जाण बूझ पग टेढ़ा चालै
करै आंगळ्यां आ कुचमादी
खुद री काया गोभा घालै
 
पीड़ा भोगी दिन हुय जावै
मरै सिसकती नित री रात्यां।
</poem>
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