भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKRachna |रचनाकार=श्रीनाथ सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKRachna
|रचनाकार=श्रीनाथ सिंह
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>
कहाँ तुम रहते हो, भगवान!
कभी न तुमको देखा मैंने,
सका न तुमको जान।
रहते हो तुम पास हमारे,
फिर कैसे लूँ मान।
तजो, अकेले रहने की,
क्यों डाली ऐसी बान।
नाथ! ऊबते होगे,
कर लो हमसे ही पहचान।
</poem>
|रचनाकार=श्रीनाथ सिंह
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>
कहाँ तुम रहते हो, भगवान!
कभी न तुमको देखा मैंने,
सका न तुमको जान।
रहते हो तुम पास हमारे,
फिर कैसे लूँ मान।
तजो, अकेले रहने की,
क्यों डाली ऐसी बान।
नाथ! ऊबते होगे,
कर लो हमसे ही पहचान।
</poem>