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<poem>
सत्तर-साला
डोकरो-डोकरी
रैंवता राजी-खुसी
चोखै-भलै पक्कै
मकान मांय

पण आं दिनां
बै लागर्या है
बीं नै बधावण
संगमरमर जड़ावण

ईं उन्हाळै री लाय में
बै भौत खपै

सोचूं-
बां री इण हिम्मत नै
सरावूं ’क बिसरावूं ?
</poem>
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