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|संग्रह=आसोज मांय मेह / निशान्त
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<poem>
बुढाप मांय आय’र
सै सौक मिटग्या
घर में कोई काम
सुळटेड़ो
लाखां रो लागै
मन मांय कदे कीं आवै
पण तिनखा सारी
टाबरां पर लाग ज्यावै
म्हारै पांती तो
फगत अै छुट्टी आवै ।
</poem>
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