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{{KKRachna
|रचनाकार=संतलाल करुण
|अनुवादक=
|संग्रह=अतलस्पर्श / संतलाल करुण
}}
{{KKCatGeet}}
<poem>दुश्मने-सरहद को जोशाँ ख़ूँ दिखाने चल पड़े
वादियाँ ख़ूँ तर-बतर हम ख़ूँ नहाने चल पड़े |
सरज़मीं अब तक रही वाबस्तए जानो-जिगर
सरज़मीं के वास्ते अब सीना ताने चल पड़े |
हमज़बाँ देखा ग़जब लगते शरीफ़ों को गले
ज़ह्रागीं मारे-आस्तीं को ख़ुद मिटाने चल पड़े |
ख़ूब सौदाए-शहादत बढ़के याराँ ने किया
आज शैदाए-वतन फिर ख़ूँ बहाने चल पड़े |
घुसपैठिए सियाहदिल सरबरहना सरहदें
सरकोब सरबाज़ हम सरहद बचाने चल पड़े |
ऐ बटालिक, काक्सर, मश्कोह, द्रासो-कारगिल
लो सलामो-अम्न हम वादा निभाने चल पड़े |
</poem>
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|संग्रह=अतलस्पर्श / संतलाल करुण
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<poem>दुश्मने-सरहद को जोशाँ ख़ूँ दिखाने चल पड़े
वादियाँ ख़ूँ तर-बतर हम ख़ूँ नहाने चल पड़े |
सरज़मीं अब तक रही वाबस्तए जानो-जिगर
सरज़मीं के वास्ते अब सीना ताने चल पड़े |
हमज़बाँ देखा ग़जब लगते शरीफ़ों को गले
ज़ह्रागीं मारे-आस्तीं को ख़ुद मिटाने चल पड़े |
ख़ूब सौदाए-शहादत बढ़के याराँ ने किया
आज शैदाए-वतन फिर ख़ूँ बहाने चल पड़े |
घुसपैठिए सियाहदिल सरबरहना सरहदें
सरकोब सरबाज़ हम सरहद बचाने चल पड़े |
ऐ बटालिक, काक्सर, मश्कोह, द्रासो-कारगिल
लो सलामो-अम्न हम वादा निभाने चल पड़े |
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