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{{KKRachna
|रचनाकार=रामनरेश पाठक
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>लोग
रौशनी से डरते हैं
सच से कतराते हैं
टेसू कहाँ फूलें ?
देह
देह के आ जाने को डरती है
कोहबर घर से कतराती है
गुलाब कहाँ उगें ?
गीत के पोखर
आदमी से डरते हैं
अपनी ही मेंड़ से कतराते हैं
कमल कहाँ झूमें ?
आओ
जुगनू की छाँव में
प्यार करें और अलग हो जायें
एक बड़ी लड़ाई
छिड़ने वाली है !
</poem>
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<poem>लोग
रौशनी से डरते हैं
सच से कतराते हैं
टेसू कहाँ फूलें ?
देह
देह के आ जाने को डरती है
कोहबर घर से कतराती है
गुलाब कहाँ उगें ?
गीत के पोखर
आदमी से डरते हैं
अपनी ही मेंड़ से कतराते हैं
कमल कहाँ झूमें ?
आओ
जुगनू की छाँव में
प्यार करें और अलग हो जायें
एक बड़ी लड़ाई
छिड़ने वाली है !
</poem>