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{{KKRachna
|रचनाकार=ममता कालिया
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>एक पराँठा गोभी का लो
एक पराँठा मूली का,
एक पराँठा पीटर को दो
एक पराँठा जूली का।
एक पराँठा मेथी वाला
खाएगी प्यारी मुन्नी
एक पराँठा आलू वाला
माँग रही चंचल चुन्नी।
एक पराँठा बेसन वाला
एक पराँठा पिट्ठी का
दही मँगाओ कुल्हड़ भरकर
बने नाश्ता छुट्टी का!
-साभार: हीरोज पत्रिका, इलाहाबाद, 41
</poem>
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एक पराँठा पीटर को दो
एक पराँठा जूली का।
एक पराँठा मेथी वाला
खाएगी प्यारी मुन्नी
एक पराँठा आलू वाला
माँग रही चंचल चुन्नी।
एक पराँठा बेसन वाला
एक पराँठा पिट्ठी का
दही मँगाओ कुल्हड़ भरकर
बने नाश्ता छुट्टी का!
-साभार: हीरोज पत्रिका, इलाहाबाद, 41
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