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{{KKRachna
|रचनाकार=योगेंद्रकुमार लल्ला
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>तोते जी, ओ तोते जी!
पिंजरे में क्यों रोते जी!
तुम तो कभी न शाला जाते,
टीचर जी की डाँट न खाते।
तुम्हें न रोज नहाना पड़ता,
ठीक समय पर खाना पड़ता।
अपनी मरजी से जगते हो,
जब इच्छा हो, सोते जी!
फिर क्यों बोलो, रोते जी!
तुम्हें न पापा मार लगाते,
तुम्हें न कड़वी दवा पिलाते!
तुम्हें न मम्मी आँख दिखाती,
तुम्हें न दीदी कभी चिढ़ाती!
खूब उछलते, खूब कूदते,
कभी नहीं चुप होते जी!
फिर क्यों बोलो रोते जी!
आओ, तुम बाहर आ जाओ,
मुझ जैसा बच्चा बन जाओ,
सबसे मेरे लिए झगड़ना,
पर दादी से नहीं बिगड़ना!
तुम ही मेरी बुढ़िया दादी-
के बन जाओ पोते जी!
अब क्यों बोलो रोते जी!
</poem>
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|रचनाकार=योगेंद्रकुमार लल्ला
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>तोते जी, ओ तोते जी!
पिंजरे में क्यों रोते जी!
तुम तो कभी न शाला जाते,
टीचर जी की डाँट न खाते।
तुम्हें न रोज नहाना पड़ता,
ठीक समय पर खाना पड़ता।
अपनी मरजी से जगते हो,
जब इच्छा हो, सोते जी!
फिर क्यों बोलो, रोते जी!
तुम्हें न पापा मार लगाते,
तुम्हें न कड़वी दवा पिलाते!
तुम्हें न मम्मी आँख दिखाती,
तुम्हें न दीदी कभी चिढ़ाती!
खूब उछलते, खूब कूदते,
कभी नहीं चुप होते जी!
फिर क्यों बोलो रोते जी!
आओ, तुम बाहर आ जाओ,
मुझ जैसा बच्चा बन जाओ,
सबसे मेरे लिए झगड़ना,
पर दादी से नहीं बिगड़ना!
तुम ही मेरी बुढ़िया दादी-
के बन जाओ पोते जी!
अब क्यों बोलो रोते जी!
</poem>