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तोते जी / योगेंद्रकुमार लल्ला

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<poem>तोते जी, ओ तोते जी!
पिंजरे में क्यों रोते जी!

तुम तो कभी न शाला जाते,
टीचर जी की डाँट न खाते।
तुम्हें न रोज नहाना पड़ता,
ठीक समय पर खाना पड़ता।

अपनी मरजी से जगते हो,
जब इच्छा हो, सोते जी!
फिर क्यों बोलो, रोते जी!

तुम्हें न पापा मार लगाते,
तुम्हें न कड़वी दवा पिलाते!
तुम्हें न मम्मी आँख दिखाती,
तुम्हें न दीदी कभी चिढ़ाती!

खूब उछलते, खूब कूदते,
कभी नहीं चुप होते जी!
फिर क्यों बोलो रोते जी!

आओ, तुम बाहर आ जाओ,
मुझ जैसा बच्चा बन जाओ,
सबसे मेरे लिए झगड़ना,
पर दादी से नहीं बिगड़ना!

तुम ही मेरी बुढ़िया दादी-
के बन जाओ पोते जी!
अब क्यों बोलो रोते जी!
</poem>
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