भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शकुंतला कालरा |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शकुंतला कालरा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>भूरी बिल्ली आई दिल्ली,
लोग उड़ाएँ उसकी खिल्ली।
चूहों की मौसी कहलाई,
तब से उस पर आफत आई।
चूहे रहते शोर मचाते,
सारे उसके सिर चढ़ जाते।
उसका रौब रहा ना कोई,
मन ही मन वह कितना रोई।
निकले ना अब म्याऊँ-म्याऊँ,
सोचे इनको कैसे खाऊँ।
हरदम रहती घात लगाए,
कोई मोटा चूहा आए।
देख समझ उसकी चतुराई,
चूहों ने इक सभा बुलाई।
सुनो-सुनो, हे बिल्ली रानी,
आई है कुत्तों की नानी।
खाती बिल्ली बारी-बारी,
आया तुम पर संकट भारी।
डर के मारे भूरी बिल्ली,
भागी झटपट, छोड़ी दिल्ली।
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=शकुंतला कालरा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>भूरी बिल्ली आई दिल्ली,
लोग उड़ाएँ उसकी खिल्ली।
चूहों की मौसी कहलाई,
तब से उस पर आफत आई।
चूहे रहते शोर मचाते,
सारे उसके सिर चढ़ जाते।
उसका रौब रहा ना कोई,
मन ही मन वह कितना रोई।
निकले ना अब म्याऊँ-म्याऊँ,
सोचे इनको कैसे खाऊँ।
हरदम रहती घात लगाए,
कोई मोटा चूहा आए।
देख समझ उसकी चतुराई,
चूहों ने इक सभा बुलाई।
सुनो-सुनो, हे बिल्ली रानी,
आई है कुत्तों की नानी।
खाती बिल्ली बारी-बारी,
आया तुम पर संकट भारी।
डर के मारे भूरी बिल्ली,
भागी झटपट, छोड़ी दिल्ली।
</poem>