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गुड्डी गई देखने मेला / पवन करण

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<poem>गुड्डी गई देखने मेला,
भीड़-भड़क्का ठेलम ठेला!

जोकर-जादू, मोटर झूला,
पाँच रुपए में चक्की-चूल्हा!

दही-पकौड़ी, चाट मलाई,
गुड़िया ले लो, सजी सजाई!

छुक-छुक करती चलती रेल,
नए-नवेले देखो खेल!

चार आने में देखो झाँकी,
सबसे अच्छी गई है आँकी!

शोर-शराबा भीड़ का रेला,
गुड्डी गई देखने मेला!
</poem>
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