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|रचनाकार=देवेंद्र कुमार 'देव'
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<poem>देख पराँठा आलू का,
मन ललचाया भालू का।
बोला, हम भी खाएँगे,
कुछ घर पर ले जाएँगे।
कहे लोमड़ी, ना-ना-ना,
ये घर पर ले जाना ना।
इतने सेंक ना पाऊँगी,
खुद भूखी रह जाऊँगी।
</poem>
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