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|रचनाकार=दिनेश कुमार स्वामी 'शबाब मेरठी']]
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<poem>
अँधेरी शब में हवा से नज़र मिलाते हुए
मैं बुझ न जाऊँ कहीं ख़ुद को आज़माते हुए
वो कौन है मुझे आवाज़ क्यों नहीं देता
मैं सुन रहा हूँ जिसे ख़ुद में गुनगुनाते हुए
मेरे ही साथ मुझे जिसके पास जाना है
वो चल रहा है मुझे रास्ता बताते हुए
अँधेरा ढँकना है रंगीन इश्तिहारों से
उसे ख़्याल था शायद ख़बर लगाते हुए
</poem>
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अँधेरी शब में हवा से नज़र मिलाते हुए
मैं बुझ न जाऊँ कहीं ख़ुद को आज़माते हुए
वो कौन है मुझे आवाज़ क्यों नहीं देता
मैं सुन रहा हूँ जिसे ख़ुद में गुनगुनाते हुए
मेरे ही साथ मुझे जिसके पास जाना है
वो चल रहा है मुझे रास्ता बताते हुए
अँधेरा ढँकना है रंगीन इश्तिहारों से
उसे ख़्याल था शायद ख़बर लगाते हुए
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