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Kavita Kosh से
मुझे दुःख था मगर इतना कहाँ था
सफ़र काटा हसी है इतनी मुश्किलों से
वहां साया न था पानी जहाँ था
वहीँ फेंक आओ आईना जहाँ था
मैं क़त्ल -ए -आम का शाहिद हूँ 'क़ैसर'
कि बस्ती में मीरा ऊँचा मकाँ था
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