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|रचनाकार=सत्य मोहन वर्मा
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<poem>तुमने जो दिए थे गुलाब के फूल,
आज भी रक्खे हैं मेरी किताबों में,
गंध-हीन .

तुमने जो भेजे थे कवितानुमा संकेत,
आज भी रक्खे हैं मेरी अलमारी में,
अर्थ-हीन .

तुमने जो बोले थे अनजाने नेह-बोल,
आज भी रक्खे हैं मन के तहखानों में,
शब्द-हीन .

और अब ये मुझसे गंध, अर्थ और शब्द मांगते हैं ...
</poem>
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