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{{KKRachna
|रचनाकार=राग तेलंग
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>हर कोई
बचाए हुए चलता
अपने बच्चे को
हर हाल में
क्या बूढ़ा-क्या जवान
यहां तक कि
तक॔-वितक॔ के भी वक्त
धूप-छांव,
आंधी-बारिश,
बिजली-भूकंप भी हैरान
इस चेष्टा से
हर जीव में अंतनिॅहित
इस कोशिश से ही
संरक्षित होता जीवन
ओह !
कितनी आल्हादकारी होती होगी
प्रसव पीड़ा
सोचता हूं
जानकर यह भाव !
</poem>
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<poem>हर कोई
बचाए हुए चलता
अपने बच्चे को
हर हाल में
क्या बूढ़ा-क्या जवान
यहां तक कि
तक॔-वितक॔ के भी वक्त
धूप-छांव,
आंधी-बारिश,
बिजली-भूकंप भी हैरान
इस चेष्टा से
हर जीव में अंतनिॅहित
इस कोशिश से ही
संरक्षित होता जीवन
ओह !
कितनी आल्हादकारी होती होगी
प्रसव पीड़ा
सोचता हूं
जानकर यह भाव !
</poem>