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{{KKRachna
|रचनाकार=शैलजा पाठक
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं एक देह हूँ, फिर देहरी
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<poem>मैं जब भी लिखूंगी प्रेम
प्रेम पर कोई कविता
समय की बंजर छाती पर
कुछ उदास पत्ते गिरेंगे

जब भी याद करती हुई
देखूंगी अनंत आकाश की ओर
कायनात की पलकें बंद होंगी
कुछ सफेद मोती झरेंगे

जब भी उतारूंगी
तुम्हारे नाम का दीया
अपने शहर की नदी में
तुम्हारे मन के समंदर में
मेरी जोड़ी भर आँखें
तुम्हारे मौन किनारों से टकराएंगी

मेहंदी के सुर्ख लाल होने पर
उभरेगा प्रेम हथेली पर
देखना...
अस्त हो जायेगा सूरज...समय से पहले

लिखती रहूंगी प्रेम ताकि बचे रहें हरे पत्ते
बचे रहे सफेद कबूतर के जोड़े
धड़कती रहे धरती

तुम भी तो सुनना...सुनोगे ना?</poem>
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