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{{KKRachna
|रचनाकार=शैलजा पाठक
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं एक देह हूँ, फिर देहरी
}}
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<poem>कभी देखा है
पंछियों को पिंजरे के साथ
बेचने वालों को

उनके शरीर के पिंजर के अन्दर
जो धड़कती सी चिडिय़ां है ना

उन्हें ज़िन्दा रखने को
ये आसमान का शिकार करते हैं।</poem>
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