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जब फागुन फ़ागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की ।की।और दफ़ (चंग) के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की ।की।परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें बहारे होली की ।की।ख़मशीशए<ref>सुराहीसागर</ref> शीशए, जाम<ref>शराब का प्याला</ref> छलकते हों तब देख बहारें बहारे होली की ।की। महबूब नशे में छकते<ref>मस्त हों, बहकते हों</ref> हों हो तब देख बहारें बहारे होली की ।।1।।की॥1॥
हो नाच रंगीली परियों का बैठे हों गुलरू<ref>फूलों जैसी सुंदरफूल जैसे सुन्दर, सुकोमल और सुकुमार मुखड़े मुख वाली नायिका</ref> रंग भरे ।भरे।कुछ भीगी तानें होली की कुछ नाज़ो-अदा के ढंग भरे ।भरे।दिल भूले देख बहारों को और कानों में आहंग<ref>गान</ref> भरे ।भरे।कुछ तबले खड़के रंग भरे कुछ ऐश के दम मुँहचंग भरे ।मुंहचुग भरे। कुछ घुँघरू घुंघरू ताल झनकते हों तब देख बहारें बहारे होली की ।।2।।की॥2॥
सामान जहाँ जहां तक होता है इस इशरतइश्रत<ref>सुख, आनन्द, ख़ुशीखुशी</ref> के मतलूबों<ref>इच्छुक, प्रेमी</ref> का ।का॥वो वह सब सामान मुहैया हो और बाग़ खिला हो ख़ूबों (सुंदरियों) का ।खू़बों<ref>सुन्दर, माशूक, प्रियतमाएं</ref> का।हर आन शराबें ढलती हों और ठठ हो रंग के डूबों का ।का।इस ऐश मज़े मजे़ के आलम में इक एक ग़ोल खड़ा महबूबों का ।का। कपड़ों पर रंग छिड़कते हों तब देख बहारें बहारे होली की ।।3।।की॥3॥
गुलज़ार<ref>बाग़</ref> खिले हों परियों के, और मजलिस की तैयारी हो ।हो।कपड़ों पर रंग के छीटों छींटों से ख़ुशरंग खुश रंग अजब गुलकारी हो ।हो।मुँह मुंह लाल, गुलाबी आँखें हों, आंखें हो और हाथों में पिचकारी हो ।हो।उस रंग भरी पिचकारी को, अँगिया अंगिया पर तककर तक कर मारी हो ।हो। सीनों से रंग ढलकते हों, तब देख बहारें बहारे होली की ।।4।।की॥4॥
और एक तरफ़ तरफ दिल लेने को महबूब भवैयों<ref>भावपूर्ण ढंग से नाचने वाले</ref> के लड़के ।लड़के।हर आन घड़ी गत भरते हों कुछ घट-घट के कुछ बढ़-बढ़ के ।बढ़के।कुछ नाज़ जतावें लड़-लड़ के लड़के कुछ होली गावें अड़-अड़ के ।के।कुछ लचकें शोख़ कमर पतली कुछ हाथ चले कुछ तन फ़ड़के ।फ़ड़के। कुछ काफ़िर नैन मटकते हों तब देख बहारें बहारे होली की ।।6।।की॥6॥
यह धूम मची हो होली की और ऐश मज़े मजें का छक्कड़ हो ।हो।उस खींचा-खींच घसीटी पर और भडुए भडु़ए रंडी का फक्कड़ हो ।हो।माजून(<ref>कुटी हुई दवाओं को शहद या शंकर शकर के क़िवाम में मिलाकर बनाया हुआ अवलेह) </ref> शराबें, नाच, मज़ा और टिकिया<ref>चरस , गांजे वगैरह की गोल टिकिया जो चिलम में रखकर पीते हैं</ref>, सुलफ़ासुल्फ़ा<ref>चरस</ref>, कक्कड़<ref>जल्द सुलग जाने के लिए, गीले और सूखे तम्बाकू को मिलाकर भुरभुरा बनाया बनाया हुआ पीने का तम्बाकू</ref> हो ।हो।लड़-भिड़के 'नज़ीर' ‘नज़ीर’ फिर निकला हो कीचड़ में लत्थड़-पत्थड़ हो ।हो। जब ऐसे ऐश झमकते हों तब देख बहारें होली की ।।7।। की॥7॥
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