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| रचनाकार= दीपक शर्मा 'दीप'
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था करम आपका मोहल्ले में
मैं नहीं चल सका मोहल्ले में I

जो ज़रुरत थी , वो ज़रुरत है
और सब हो गया मोहल्ले में I

आपने , मैंने और हम सब ने
कुछ बदलने दिया मोहल्ले में ?

इस मोहल्ले में भी मोहल्ले हैं ?
आपने क्या किया मोहल्ले में ?

शक्ल उतरी है , लड़खड़ाते हो
यार क्या खा लिया मोहल्ले में ?
</poem>